यह प्रभाग 1992 में तीन अलग-अलग प्रभागों वन-पारिस्थितिकी एवं पुनर्वास प्रभाग, जैव-विविधता एवं सतत् प्रबंधन प्रभाग और वन वनस्पति विभाग प्रभाग के साथ अस्तित्व में आया । वन वनस्पति विभाग का वर्ष 2001 में जैवविविधता एवं सतत् प्रबंधन प्रभाग के साथ विलय हो गया और जैवविविधता और सतत् प्रबंधन प्रभाग का 2018 में वन पारिस्थितिकी और पुनर्वास विभाग में विलय हो गया । अंत में, प्रभाग का नाम बदलकर वन पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन प्रभाग कर दिया गया है ।
प्रभाग के मुख्य अनुसंधान क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, वृक्षारोपण और वनों का मूल्यांकन, वनों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभों और पर्यावरण-पुनर्स्थापना, जैव विविधता आंकलन, वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन, मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण है ।
मुख्य क्षेत्र
- जैवविविधता संरक्षण एवं पारिस्थितिक सुरक्षा ।
- वन एवं जलवायु परिवर्तन ।
- वनिकी वनस्पति ।
- वन भू-स्थल मृदा एवं वनभू-सुधार ।
- पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण ।
- पर्यावरण प्रबंधन ।
अधिदेश
- वृक्षारोपण, प्राकृतिक वनों और कृषि प्रणालियों में उष्णकटिबंधीय वन वृक्ष प्रजातियों की जलवायु परिवर्तन और कार्बन अनुक्रम क्षमता पर अध्ययन का संचालन करना
- उष्णकटिबंधीय वन वृक्ष प्रजातियों के वृक्षारोपण, प्राकृतिक वन और कृषिवानिकी प्रणालियों में जलवायु परिवर्तन और कार्बन अनुक्रम क्षमता पर अध्ययन का संचालन करना
- उष्णकटिबंधीय वन वृक्ष प्रजातियों के वृक्षारोपण, प्राकृतिक वन और कृषिवानिकी प्रणालियों में जलवायु परिवर्तन और कार्बन सिक्विस्ट्रेशन क्षमता का अध्ययन करना
- प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभों के लिए प्राकृतिक वन और वृक्षारोपण कर मूल्य निर्धारण ।
- बांध एवं नहर अधिगृहित भू-क्षेत्रों, किनारे एवं बंजर भूमि सहित भू-खदानित अधिभार ढेर (mined out overburden dumps), लवण प्रभावित भू-क्षेत्र (salt affected land), जलभरावयुक्त भू-स्थल (waterlogged sites) सम्मिलित अवक्रमित वन(Degraded Forest) समस्या युक्त भू-स्थलों के पारिपुनर्वास के लिए संवेष्टन (पैकेजेस) विकसित करना ।
- प्राकृतिक वनों एवं औद्योगिक वृक्षारोपण की सूची जैवविविधता आकलन और पौधों का जीवसंख्या गतिशीलता का आकलन करना ।
- गैर-वानिकी प्रयोजन हेतु वन भूमि परिवर्तन (diversion) करने के दौरान सार्वजनिक उपक्रम जैसे- सी.आई.एल. (CIL), एस.ई.सी.एल (SECL), एन.सी.एल.(NCL) को परामर्श प्रदान करना ।
अनुसंधान गतिविधियां
अनुसंधान परियोजनाएं
क्रं.सं.
|
परियोजना शीर्षक
|
निधीयन एजेंसी
|
परियोजना कालावधि
|
-
|
आर.एस.पी. ओडिशा में वनीकरण के माध्यम से कार्बन i`Fkdhdj.k
|
सेल. रांची
|
जनवरी 2014 से मार्च, 2020 तक
|
-
|
मध्य प्रदेश के सतपुड़ा कृषि जलवायु युक्त पठार क्षेत्र में पादपविविधता (फैटोडायवर्सिटी) का उपभोक्ता के अनुकूल डाटा बेस (युजर फ्रेंडली डाटाबेस) तैयार करना
|
मध्य प्रदेश राज्य वन विभाग, भोपाल
|
अप्रैल 2015 से मार्च, 2018 तक
|
-
|
मैक्रोस्केल हैड्रॉलॉजिकल मॉडल का उपयोग करके नर्मदा नदी बसिन के प्रवाह को विनियमित करने पर वन कवर परिवर्तन का प्रभाव
|
मध्य प्रदेश राज्य वन विभाग, भोपाल
|
अप्रैल 2015 से मार्च, 2019 तक
|
-
|
महाराष्ट्र में वृक्षों की प्रजातियों की उपज, गुणवत्ता और प्राकृतिक पुनर्जनन पर तेन्दू झाडियों की छंटाई के प्रभाव का आंकलन करना ।
|
महाराष्ट्र राज्य वन विभाग
|
जनवरी 2016 से मार्च, 2020 तक
|
-
|
चयन के तहत कैनोपी खोलने के समबन्ध में वन समुदायों की जैवविविधता, उत्थान एवं जीवन इतिहास प्रतिक्रिया का मूल्यांकन करना ।
|
भारतीय वानिकी अनुसंधान एव शिक्षा परिषद्, देहरादून
|
|
7.
|
औषधीय महत्व और संरक्षण प्राथमिकता की प्रजातियों पर विशेष जोर देने के साथ छत्तीसगढ़ के एमपीसीए में वनस्पतियों की विविधता का पारिस्थितिक मूल्यांकन |
छत्तीसगढ़ राज्य औषधीय पादप बोर्ड |
अप्रैल, 2016 से मार्च, 2018 तक
|
8.
|
सागौन मे वार्षिक मौसम के उतार-चढाव के संबंध में वनस्पति जल संबंधों को समझना |
भा.वा.अ.शि.प., देहरादून |
अप्रैल, 2017 से मार्च, 2020 तक
|
9.
|
मध्य प्रदेश वनों में भूमि क्षरण का मात्रात्मक मूल्यांकन और शमन उपाय का सुझाव |
मध्य प्रदेश राज्य वन विभाग, भोपाल |
2020 -2021
|
परामर्श कार्य परियोजनाए
क्रं.सं.
|
परियोजना शीर्षक
|
निधीयन एजेंसी
|
परियोजना समापन वर्ष
|
1.
|
ए.एन.एम.एल. गोंदिया में अनुसंधन पार्क के राख उपयोग संवर्धन औरविकास केलिए कार्यान्वयन योग्य वानिकी अनुसंधान
|
अदानी विद्युत महाराष्ट्र लि.
|
मार्च, 2024
|
2.
|
मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में एनटीपीसी प्रोग्राम के तहत वृक्षारोपण की निगरानी करना ।
|
एन टी पी सी
|
2022
|
3.
|
राजेन्द्र और दामिनी भूमिगत खदान (एस.इ.सी.एल) सोहागपुर (मध्य प्रदेश) के लिए वन्यजीव संरक्षण योजना
|
एस ई सी एल, सोहागपुर
|
2020
|
4.
|
भाटगांव, महामाया भूमिगत, कल्याणी भूमिगत खदान और दुग्गा ओ.सी के लिए वन्यजीव संरक्षण योजना
|
एस ई सी एल, भाटगांव क्षेत्र
|
2019
|
5.
|
श्री सिंगाजी थर्मल पावर प्रोजेक्ट में फ्लाई ऐश लैगून के जैविक पुनर्ग्रहण के माध्यम से उत्सर्जित राख को नियंत्रित करना ।
|
मध्य प्रदेश विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड
|
अक्तुबर 2019
|
6.
|
चुरचा एवं काटकोना कोलरिस के लिए वन्यजीव संरक्षण योजना
|
एस ई सी एल, बैकुंटपुर
|
2019
|
7.
|
कंचन विस्तार परियोजना के लिए वन्यजीव संरक्षण योजना
|
एस ई सी एल, जोहिल्ला वन क्षेत्र
|
2019
|
8.
|
झिलमिलि एवं पांडवपारा भूमिगत खदान हेतु वन्यजीव संरक्षण योजना
|
एस ई सी एल, बैकुंटपुर वन क्षेत्र
|
2019
|
9.
|
दिपका विस्तार परियोजना हेतु वन्यजीव संरक्षण योजना
|
एस ई सी एल, दीपका क्षेत्र
|
2018
|
10.
|
एनटीपीसी-रामगुंडम सुपर थर्मल पावर स्टेशन के आस पास कृषि प्रयोजन के लिए राख तलाब (Ash pond) के पानी का उपयोग ।
|
एन टी पी सी, रामगुंडम
|
2019
|
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं
क्रं. सं.
|
ए आई सी आर पी सं.
|
परियोजना-शीर्षक
|
परियोजना के प्रमुख अन्वेषक
|
-
|
13
|
पारिस्थितिकी जीवनतंत्र पदार्थों एवं सेवाओं के जीडीपी, ग्रीन जीडीपी एवं शोधन हेतु वनों का मूल्यांकन
|
डॉ. अविनाश जैन
|
-
|
14
|
वनाग्नि अनुसंधान एवं ज्ञान प्रबंधन
|
डॉ. धीरज कुमार गुप्ता
|
-
|
19
|
विभिन्न वनवृक्ष प्रजातियों की जल आवश्यकता एवं अवमृदा आर्द्रता (subsoil moisture)पर इसके प्रभाव का आंकलन
|
डॉ. धीरज कुमार गुप्ता
|
-
|
22
|
भारतवर्ष के समस्त वन प्रखंडों में विभिन्न वन पेड-पौधे तहत वन मृदा स्वास्थ्य पत्र तैयार करना
|
डॉ. अविनाश जैन
|
-
|
24
|
भारतवर्ष में वन पेड-पौधे की झाडी बढाकर अवक्रमित शुष्कभूमि एवं मरुभूमि(degraded dryland and desert) का समाघात मरुस्थलिकरण (combating) (desertification)
|
डॉ. अविनाश जैन
|
-
|
31
|
भारतीय वनों पर दीर्घावधि तक निगिरानी के द्वारा भारतीय वनों पर जलवायु संचालित प्रभाव का अध्ययन ।
|
डॉ. अविनाश जैन
|
-
|
|
उत्तराखण्ड एवं मध्य प्रदेश में वनअग्नि (Forest Fire) के कारण हुई वास्तविक आर्थिक क्षति का प्रतिहेक्टर आधार पर आकलन
|
डॉ. धीरज कुमार गुप्ता
परियोजना सह अन्वेषक
|
प्रशिक्षण
क्रं. सं.
|
प्रशिक्षण शीर्षक
|
वर्ष
|
उपभोक्ता समूह
|
1.
|
औद्योगिक वृक्षारोपण द्वारा कार्बन पृथकीकरण
|
2019-20
|
एम पी पी जी सी एल के अधिकारी
|
2.
|
वनीकरण के माध्यम से कार्बन पृथकीकरण
|
2019-20
|
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड के अधिकारी
|
3.
|
वानिकी क्षेत्र में आपदा जोखिम में कमी और जलवायु में लचीलापन
|
2019-20
|
भारतीय वन सेवा एवं आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ, आई.टी.बी.पी. वैज्ञानिक, प्रोफेसर और छात्र
|
अन्य उपलब्धियां
महत्वपूर्ण उपलब्धियां
- 1958 से 2014 के दौरान, राउरकेला इस्पात संयत्र (आरएसपी) ओडिशा के 1013 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाले रोपित विभिन्न वृक्ष प्रजातियों के 42.12 लाख वृक्षो में कार्बन संग्रह (कार्बन स्टॉक) एवं वार्षिक अनुक्रम का मूल्यांकन किया गया और 5.46 टन/हेक्टेयर चार वर्ष के दौरान, 144.28 टन/हेक्टेयर से 166.11 टन/हेक्टेयर तक कार्बन संग्रह (कार्बन स्टॉक) में वृद्धि हुई ।
- राउरकेला स्टील प्लांट (आरएसपी) में वृक्षारोपण और प्राकृतिक वन का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ का मूल्यांकन किया गया । प्रत्यक्ष लाभों में, इमारती लकड़ी (टिबंर), ईंधन काष्ठ (फ्युल वूड) एवं चारा; (फूडर) शामिल है, जबकि, अप्रत्यक्ष लाभ मे प्रदूषण नियंत्रण, मृदा संरक्षण एवं भूमिगत जल तालिका में वृद्धि शामिल है । अप्रत्यक्ष लाभ अनिश्चित(कंटिजेन्ट) वैल्यूएशन विधि से मूल्यांकन किया गया । प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तावित औसत Hkqxrku djus dh bPNk की गणना Rs.840.70 से की गई ।
- महाराष्ट्र के गोंदिया और गढ़चिरोली वन खंडो में बिना कटे हुए तेन्दू के खम्भो की तुलना में छंटाई की हुई झाड़ी वाले स्थल उच्च सम्पोषण एवं रूट सकर्स के जरिए विशेष एवं अधिक संख्या में पुनरुज्जीवित होना दर्शाती है ।
- 12. वन क्षेत्र में (876 वर्ग कि.मी) वर्ष1985 से 1995 तक घटौती होने के कारण, वर्षा ऋतु एवं पश्च वर्षा ऋतु (जून दिसंबर) में वन सतह बहाव में 103.2 दशलक्ष घन मिटर एमसीएम (मिलियन क्युबिक मिटर) वृद्धि हुई और मूल प्रवाह (नदी को भू-जल देन) 2.5 दशलक्ष घन मिटर तक घटा । उसी प्रकार, वर्ष 1995 से 2005 दौरान वन क्षेत्र में (296 वर्ग कि. मि.) तक घटा बरसाती एवं बरसाती मौसम (जून दिसंबर) एवं उसके पश्चात में वन सतह बहाव में 296 दशलक्ष घन मिटर एमसीएम (मिलियन क्युबिक मिटर) वृद्धि हुई और मूल प्रवाह (नदी को भू-जल देन) 0.846 दशलक्ष घन मिटर एमसीएम (मिलियन क्युबिक मिटर) तक घटा । अतः वनावरण बहाव विनियामक का कार्य करता है जो बरसाती मौसम में अधिकतम बहाव (peak flow) एवं अकाल के मौसम (lean season) मूल प्रवाह वृद्धित किया गया ।
- वर्ष 2011-16 के दौरान बुन्देलखण्ड विशेष संवेष्टन (पैकेज) के कार्यान्वयन के प्रभाव (इंपैक्ट) का मूल्यांकन कर 1301 ha (नये स्थायी 5 ha एवं नये मौसमी1296 ha) जलाशय क्षेत्र (water body area) में वृद्धि पायी गई । भू-संरचना के सामीप्य एवं अनुप्रवाह (Vicinity & downstream) में मृदा आर्द्रता में भी सार्थक परिवर्तन देखा गया । बरसाती मौसमोपरान्त (नवम्बर माह) के दौरान जल स्तर को स्थानिक माध्य (Spatial mean) का प्रयोग कर भू-जल स्तर विश्लेषण करने पश्च दृश्यलेख (post scenario) में 5% (>_1m) स्तर पर सार्थक परिवर्तन प्रतित हुआ ।
- विदर्भ वनक्षेत्र जो मानव जनित (अन्थ्रोपोजेनिक) गतिविधियां एवं अल्प आर्द्रता के सिवा महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट के सदाहरित (एवरग्रीन) वन (15.26t/ha) की तुलना में (19.17 t/ha) पर्णपाती वन जो वनाग्नी का अतिरिक्त जनित कारक (अडिशनल फैक्टर) माना जाता है, के वन क्षेत्र का सर्वेक्षण एवं उच्चतर घास-फूस ढेर का मूल्यांकन अध्ययन किया गया।
- छत्तीसगढ़, भारत से संग्रहित औषधीय जड़ी-बुटी के परोक्ष चित्रण-विवरण का एक तकनीकी बुलेटिन द्विभाषी रूप में प्रकाशित किया गया ।
- मध्य प्रदेश के सागौन, साल एवं संमिश्र वनों में चयन सह सुधार कटान पद्धति (एससीआई) तहत जीव संख्या संरचना एवं समूह संयोजन पर वितानी (केनोपी) वृक्ष के संघात का अध्ययन किया जा रहा है । संमिश्र पर्णपाती वनों में 895 कुल खंभे ha -1 को अभिलेखित किया गया और पाया गया कि, टेक्टोना ग्रैंडिस वृक्ष समूह के अनुसरण में तेन्दू का उच्चतर वृक्ष घनत्व है । चूकिं, तेन्दू के (1.43sqm ha-1) एवं लेजेरस्ट्रोमिया पार्विफ्लोरा (1.10sqm ha-1) के अनुसरण में टेक्टोना ग्रैडिस के (7.65sqm ha-1) उच्चतर आधारभूत वृक्षाच्छादन अभिलेखित किया गया जिस पर आगे अध्ययन जारी है ।
- टेक्टोना ग्रँडिस (सागौन) के दो घेरा प्रकार 10-30 से.मी. एवं 10-60 से.मी.) में रस स्राव संवेदक(Sap flow sensors)प्रयोग कर रस स्राव नमूनों का अध्ययन किया गया और पाया गया कि,10-60 से.मी घेरा तने की तुलना में 10-30 से.मी. घेराव तने में उच्चतर रस स्राव रहा । 10-30 से.मी. घेरा तने में औसतन रस स्राव 0.791 के.जी एच 1 पाया गया जबकि च्चतर घेरा तने में रस स्राव 0.054 के.जी. एच 1 मात्र पाया गया । रस स्राव का दर अन्तःकाष्ठ में उच्चतर एवं न्यूनतर घेरा किस्म के रसदारु (सैप् वुड) में कम पाया गया जबकि, उच्चतर घेरा प्रकार के तने में इसके विपरित पाया गया ।
- सैप फ्लो सेंसर्स (sap flow sensors) प्रयोग कर सागौन (टेक्टोना ग्रँडिस) में पादप-जल उपयोग पर तीन वर्ष का अध्ययन पूरा किया ।
- वर्ष 2016-2018 के दौरान, मझगांव हिरा खान परियोजना पन्ना के पर्यावरणीय प्रभावों की निगरानी (मॉनिटर) के लिए मध्य प्रदेश शासन द्वारा गठित टास्क फोर्स (कार्य-दल) के सदस्य के रूप में कार्य किया ।
- आई सी एफ आर ई एवं कोल इडिंया लिमिटेड (सीआईएल) के बीच हुए समझोता-करार के तहत छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी कोलफिल्ड लिमिटेड में खुली खदान एवं भूमिगत कोयला खदान के वन्यजीव संरक्षण हेतु योजनाओं की तैयारी
प्रभाग में पदस्थ अधिकारी एवं कर्मचारी
क्रं.सं.
|
नाम
|
पदनाम
|
संपर्क क्रमांक
|
ई-मेल पता
|
-
|
डॉ. अविनाश जैन
|
प्रभागाध्य एवं वैज्ञानिक-एफ
|
9826563036
9424617880
|
jainavi@yahoo.com
jainavi@icfre.org
avinashjain171@gmail.com.
|
-
|
श्री एम. राजकुमार
|
वैज्ञानिक-डी
|
9424625519
|
rajkumarm@icfre.org.
rajinecol@gmail.com
|
-
|
श्री धीरज के. गुप्ता
|
वैज्ञानिक-डी
|
7587525086
|
dkg@icfre.org.
tfri.gis.cell@gmail.com
|
-
|
दीपिका जंगम
|
वैज्ञानिक-बी
|
|
jangamd@icfre.org
|
-
|
अजिन सेखर
|
वैज्ञानिक-बी
|
|
sekhara@icfre.org
|
-
|
श्रीमती चन्द्रलेखा ताकसांडे
|
मुख्य तकनीकी अधिकारी
|
7974591192
9425852867
|
lepandecn@@icfre.org.
|
-
|
डॉ. निधि मेहता
|
सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी
|
9977736839
9479986839
|
mehtan@icfre.org.
mehtanidhi@gmail.com
|
-
|
श्री के. एस. सेंगर
|
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी
|
9755665931
|
sengarks@icfre.org
|
-
|
श्री सैकत बैनर्जी
|
तकनीकी अधिकारी
|
9008441155
9480190182
|
banerjees@icfre.org.
saikatantara@gmail.com
|
-
|
श्री स्वरूप
अहिरवार
|
आशुलिपिक –ग्रेड ।
|
9424955788
|
aharwars@icfre.org.
|
-
|
श्री राघवेन्द्र सिंह
|
तकनीकी अधिकारी
|
7898954883
|
singhra@icfre.org.
|
-
|
श्री संजय कोमरा
|
तकनीकी अधिकारी
|
9424679102
|
sskomra@icfre.org.
|
-
|
श्रीमती पूजा सिंह
|
वरिष्ठ तकनीशियन
|
9179040152
|
poojas@icfre.org.
|
-
|
श्री रज्जन सिंह
वरकडे
|
कार्यालय परिचारक
|
7247045451
6232782151
|
|
संपर्क
डॉ. अविनाश जैन
वैज्ञानिक-एफ एवं प्रभागाध्यक्ष
वन पारिस्थितिकी एवं जलवायु परिवर्तन प्रभाग
दूरभाषः + 91-761-2840008 (का.) + 91-9826563036, 9424617880 (मोब.)
ई-मेल hod_fecc_tfri@icfre.org jaina@icfre.org